चुनाव नतीजों ने समाजवादी पार्टी को उस मोड़ पर ला खड़ा किया है जहां से उसके सामने कई रास्ते हैं। सवाल यह है कि क्या सपा अब गठबंधन में रहते हुए सीएम पद की दावेदारी आसानी से कर सकेगी। दो गठबंधन से निराशाजनक नतीजों के बावजूद क्या सपा अभी एक और जोखिम लेगी या पुरानी राह लौटती हुई अकेले चुनाव में जाएगी।  

सवाल यह भी है अगर गठबंधन आगे कायम रहता है तो क्या वोट ट्रांसफर में आई समस्या का समाधान हो सकता है। सपा के लिए अब आगे की राह पथरीली ही दिखती है। अखिलेश यादव के सामने संगठन की मजबूती, कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने, दूसरी पांत के मजबूत नेताओं की लीडरशिप विकसित करने जैसे कई कामों को करने की चुनौती है। इससे बड़ी चुनौती सपा के सामने पूरे यूपी के उस हिस्से में खुद को खड़ा करने की है जहां जहां वह 2017 के विधानसभा चुनाव में व 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के चलते मैदान से बाहर रही।

सपा नेताओं को अहसास है कि गठबंधन में इस बार बसपा का मूल वोट उस तरह उसे ट्रांसफर नहीं हुआ जैसी उम्मीद थी लेकिन सपा बसपा के मुस्लिम प्रत्याशियों के मामले में वोट आसानी से ट्रांसफर हुआ। यही कारण है कि गठबंधन की ओर से छह मुस