लोकतांत्रिक देश के माननीय प्रधानमंत्री महोदय एक तरफ भ्रष्टाचार मुक्त करने की बात कर रहे हैं और यह मामला लोकतंत्र के न्याय न्याय के मंदिर में जोर-शोर से उठाया जा रहा है। जबकि दूसरी तरफ यह भ्रष्टाचार रूपी पौधा अपनी मजबूत जड़ ही नहीं अपनी शाखाएं भी फैलाए खड़ा है। कहने का तात्पर्य यह है। इसके बीच बचाव के श्रृंखला बहुत लंबी है।