अतुल यादव, विशेष संवाददाता 




राजनीतिक व्यंग:क्या लोकतांत्रिक भारत में पक्ष या विपक्ष नेताओ के लिए जनता घोड़े की तरह हो गई है जिसका लगाम इन नेताओ के हाथ में है 

दरअसल यह सवाल वाजिब हो सकता है कि क्या चुनाव के समय ही जनता हांकी जाती है? क्या खेल में जोतने से पहले जनता से उसकी मर्जी पूछी गई थी?

तमिल में लोकतंत्र के लिए शब्द है - जननायकम, जिसका मलतब
 है कि जनता ही नेता है। यह भी कह सकते हैं कि न

कोई नेता है, न कोई जनता है। दुर्भाग्य की बात है कि

 आम लोग यह भूल गए हैं कि वे नेता हैं।

क्या जनता की जीत-हार कहीं है? क्या दौड़ में